Friday, January 28, 2011

ek gazal

बारिश सारी रात होती रही,
जाने किसकी याद में रोती रही.

जाने किसको सदा देती है वो,
टकरा के फलक से खोती रही.

दर्द ए कुदरत जाने कौन भला,
दामन शबनम से भिगोती रही.

इस जहाँ कि वो नहीं शायद,
मेरे गम से जो परेशां होती रही.

Wednesday, January 19, 2011

kitana aasan hai . . .

कितना आसन है किसी भी व्यक्ति को भुला देना. मृदुला गर्ग ने ठीक ही लिखा था कि जिस जगह पर हम खड़े हैं उस जगह पर बने रहने के लिए भी लगातार दौड़ना पड़ता है. आज स्नेह मोहनीश को लोग भुला चुके है. मेहरुन्निसा परवेज़, मंजुल भगत, मृदुला गर्ग की समकालीन  स्नेह मोहनीश हिंदी और बंगला में समान अधिकार से लिखने वाली रचनाकार कल १८ जनवरी २०११ को हमसे बिछुड़ गईं. उनकी तबियत ख़राब थी. बिलासपुर छत्तीसगढ़ के रेलवे विभाग में वे नौकरी करती थीं.  अपोलो अस्पताल में कल उन्होंने अपने जीवन की अंतिम साँस लीं.