Saturday, September 17, 2011

‎'नीला रंग' शीर्षक से दो कवितायेँ लिखी है. उनमें से एक

नील
नीले रंग के
पड़ जाते थे
शरीर पर
मन पर
मार, बेगार
और अपमान के

याद है ना
गर्दन में लटकती
हंडी और
कमर में बंधी
झाड़ू की रस्सी से
झलझला उठते रक्त बिंदु

हरे जख्म लाल बंबाड
होते नीले फिर काले
और छोड़ जाते
अपने अमिट निशान
कर देते मन्
लहुलुहान

यूँ तो नहीं है आज
गले में हंडी
कमर में झाड़ू
फटे बांस का टुकड़ा
हाथों में
फिर भी
जाते क्यों नहीं
नीले निशान