पुकार
1
उसने पुकारकर कहा
सुनिए ...
थम गई
समूची कायनात तबसे
अविचल
दूसरे शब्द की
प्रतीक्षा में
साँस खींचे
२
जाने क्यूँ
पहुंचती नहीं
दिल तक
हर पुकार
कुछ ही रह जाती है जिंदा
वरना तो खो जाती हैं
सुने जाने के अनवरत
इंतजार में
३
पुकार ने
पुकारकर कहा
बैठी हूँ तनहा
कभी कोई कहीं
मुझे भी तो
पुकार ले
४
पुकार भी होती है
बेहिस व्याकुल
तनहा
तभी तो
पुकारी जाती है.
५
पुकार ने पूछा
यदि मैंने
मुक्ति मांगी
तो क्या होगा?
मुक्ति मिल जाने पर क्या होगा यह तो कल्पना से परे है
ReplyDeleteसुंदर कविता
ReplyDeletedhanywad.
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