Wednesday, January 19, 2011

kitana aasan hai . . .

कितना आसन है किसी भी व्यक्ति को भुला देना. मृदुला गर्ग ने ठीक ही लिखा था कि जिस जगह पर हम खड़े हैं उस जगह पर बने रहने के लिए भी लगातार दौड़ना पड़ता है. आज स्नेह मोहनीश को लोग भुला चुके है. मेहरुन्निसा परवेज़, मंजुल भगत, मृदुला गर्ग की समकालीन  स्नेह मोहनीश हिंदी और बंगला में समान अधिकार से लिखने वाली रचनाकार कल १८ जनवरी २०११ को हमसे बिछुड़ गईं. उनकी तबियत ख़राब थी. बिलासपुर छत्तीसगढ़ के रेलवे विभाग में वे नौकरी करती थीं.  अपोलो अस्पताल में कल उन्होंने अपने जीवन की अंतिम साँस लीं.

1 comment:

  1. bada hi dukhad raha.....manusya hi manus dharam nahi nibhata......log pathar ke hain....or bhawnayen.....shisha......

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